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Chhatrapati Sambhaji Maharaj Jayanti: आज है छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती, आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें! #छत्रपति_शिवाजी_महाराज #छत्रपति_संभाजी_महाराज #ChhatrapatiSambhajiMaharajJayanti #SambhajiMaharaj

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आज यानी 14 मई 2025 को छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती है। संभाजी महाराज मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे। इसके अलावा उनका खुद का दमदार व्यक्तित्व है। संभाजी महाराज वीर और साहसी योद्धा होने के साथ ही धार्मिक सहिष्णुता और विद्वता के प्रतीक भी हैं।

महज 15 वर्ष की उम्र में संभाजी महाराज को 13 भाषाओं का ज्ञान था। वह एक विद्वान लेखक और कवि भी थे। मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति संभाजी ने औरंगजेब की विशाल सेना से लड़ते हुए कई वर्षों तक मराठा भूमि की रक्षा की। जब औरंगजेब ने उन्हें बंदी बनाकर इस्लाम कबूल करने का आदेश दिया तो संभाजी महाराज ने धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया। इसके बाद उन्हें क्रूरता से शहीद कर दिया गया। उनकी जयंती पर संभाजी को याद करते हुए नई पीढ़ी को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।

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विस्तार

छत्रपति संभाजी महाराज जयंती हर साल 14 मई को धूमधाम से मनाई जाती है। 2025 में यह विशेष दिन बुधवार को आएगा।यह दिन है साहस और वीरता की गाथा गाने का। संभाजी महाराज महज योद्धा नहीं, धर्म और ज्ञान के प्रतीक हैं। उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देना, नई पीढ़ी को प्रेरित करना है। क्या हम उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार सकते हैं? आइए, इस लेख में संभाजी महाराज की कुछ रोचक बातें जानें।

छत्रपति संभाजी महाराज का परिवार और शिक्षा

संभाजी महाराज इस धरती पर 14 मई 1657 को, पुरंदर किले की गोद में आए। वे महान छत्रपति शिवाजी महाराज और सईबाई के पुत्र थे।  बचपन से ही, उनका मन भाषा की जादूगरी में रम गया। संस्कृत, मराठी, फारसी, हिंदी—हर शब्द में उन्होंने निपुणता हासिल की। वे केवल योद्धा नहीं, बल्कि एक विद्वान लेखक और कवि भी थे। उनकी कलम ने बुद्धिभूषण नामक ग्रंथ की रचना की। क्या नहीं है उनके अंदर?

संभाजी और मुगलों का संघर्ष

संभाजी और मुगलों के बीच एक अद्भुत संघर्ष छिड़ गया। 1681 में वे मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति बने। क्या साहस है! मुगलों, सिद्धी, और पुर्तगालियों से लोहा लेते हुए, उन्होंने अपनी धरती की रक्षा की। औरंगजेब की विशाल सेना का सामना करते हुए, उन्होंने कई वर्षों तक मराठा भूमि को सुरक्षित रखा। उनके नेतृत्व में, मराठा सेना ने मुगलों को कई बार पीछे हटने पर मजबूर किया। लेकिन 1689 में, मुगलों ने उन्हें पकड़ लिया। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम अपनाने का हुक्म दिया। लेकिन संभाजी महाराज ने धर्म परिवर्तन का एक भी ख्याल नहीं रखा। इस पर, उन्हें बर्बरता से शहीद कर दिया गया। क्या यह नायाब साहस नहीं था?

बलिदान की मिसाल

उनकी शहादत एक अमिट छाप छोड़ गई है। धर्म, स्वाभिमान और राष्ट्रभक्ति की जीवित मिसाल हैं वे। क्या हम ऐसे वीरों को कभी भूल सकते हैं? उनके नाम की गूंज सदियों तक सुनाई देगी।

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