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धारदार मांझा: पतंगबाज़ी की खुशी या जानलेवा खतरा? #AkshayaTritiya #Bikaner #अक्षय_तृतीया #AkshayaTritiya2025 #बीकानेर_स्थापना_दिवस #Kite

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भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में पतंग उड़ाना एक पारंपरिक और मनोरंजक खेल है। लेकिन हाल के वर्षों में पतंगबाज़ी के दौरान उपयोग में लाए जाने वाले धारदार मांझों ने इस आनंददायक गतिविधि को जानलेवा जोखिम में बदल दिया है। खासकर चाइनीज मांझा, जो प्लास्टिक या नायलॉन से बना होता है और कांच के महीन टुकड़ों से कोट किया जाता है, अनेक गंभीर घटनाओं का कारण बन चुका है।

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मांझे से होने वाली संभावित घटनाएं:

1. मानव जीवन को खतरा

- बाइक और स्कूटर सवारों की गर्दन कटना: मांझा अक्सर खुले में टांग जाता है या हवा में तैरता है। तेज रफ्तार में चलते बाइक सवार इससे टकरा जाते हैं, जिससे उनकी गर्दन, चेहरा या हाथ बुरी तरह कट सकते हैं। देशभर में ऐसी कई घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें मांझे से लोगों की मौत तक हो चुकी है।

- पैदल यात्रियों को चोटें: मांझा पैरों में उलझकर गिरने की वजह बन सकता है, जिससे फ्रैक्चर या सिर में गंभीर चोटें हो सकती हैं।

2. पक्षियों के लिए जानलेवा जाल

-हर साल सैकड़ों पक्षी इस मांझे में उलझकर घायल होते हैं या मर जाते हैं। उनकी पंख की नसें कट जाती हैं, जिससे उड़ने में असमर्थ हो जाते हैं और कई बार बिना इलाज के ही तड़पते हुए दम तोड़ देते हैं।

3. बिजली उपकरणों और ट्रांसमिशन लाइनों को नुकसान

- नायलॉन और धातु युक्त मांझा जब बिजली की लाइनों में उलझता है, तो यह शॉर्ट सर्किट, आग लगने, और बिजली आपूर्ति बाधित होने जैसी घटनाओं को जन्म देता है।

4. पर्यावरण प्रदूषण

- चाइनीज मांझा नॉन-बायोडिग्रेडेबल होता है यानी यह वर्षों तक मिट्टी में बना रहता है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। यह प्लास्टिक प्रदूषण को भी बढ़ाता है।


सरकारी उपाय और जनजागरूकता

भारत के कई राज्यों ने चाइनीज मांझा और नायलॉन से बने मांझों पर प्रतिबंध लगा दिया है, फिर भी यह धड़ल्ले से बाजारों में बिकता है। यह कानूनी रूप से अपराध है, लेकिन जागरूकता की कमी और सस्ती उपलब्धता इसे नियंत्रित करने में बाधा बनी हुई है।


हम क्या कर सकते है

- केवल सूती मांझा या पर्यावरण-सम्मत विकल्पों का उपयोग करें।

- पतंग उड़ाने के लिए खुले मैदान या गैर-आबादी वाले क्षेत्र चुनें।

- पतंगबाज़ी के समय दूसरों की सुरक्षा का ध्यान रखें, खासकर बाइक सवारों और पक्षियों का।

- अपने बच्चों को खतरनाक मांझे से दूर रखें और उन्हें सुरक्षित खेलने की सीख दें।

- यदि आपको रास्ते मे कहीं भी पेड़ो से लटका या उलझा हुआ मांझा मिले तो उसे सावधानी से किनारे करना।


किन वस्तुओ के इस्तेमाल से बनता है मांझा

पतंग उड़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाला मांझा (या मंझा) एक खास किस्म का धागा होता है जो पतंगबाज़ी में प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया जाता है। यह साधारण सूती या नायलॉन धागे को विशेष मिश्रण से कोट करके बनाया जाता है ताकि वह मजबूत, धारदार और टिकाऊ हो।


मांझा बनाने में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख चीजें:

धागा – यह मुख्य आधार होता है।

पारंपरिक रूप से सूती धागा इस्तेमाल होता है।

अब अक्सर नायलॉन या सिंथेटिक धागा भी प्रयोग में लाया जाता है (इसे चाइनीज मांझा भी कहा जाता है, जो ज़्यादा खतरनाक होता है)।

चावल का आटा – मांझे के लेप (कोटिंग) के लिए इस्तेमाल होता है।

गोंद – लेप को धागे पर चिपकाने के लिए।

कांच का बारीक चूरा (सूखा या पिसा हुआ कांच) – मांझे को धारदार बनाने के लिए।

रंग/डाई – रंग देने के लिए, ताकि वह दिखने में आकर्षक लगे।

अक्सर कुछ लोग बोरिक पाउडर, एलुमिनियम पाउडर या केमिकल भी मिलाते हैं – ये मांझे को और भी खतरनाक बना सकते हैं।


भारत में मांझे से हुई प्रमुख दुर्घटनाएँ और आँकड़े

1. गुजरात

- 2025 (मकर संक्रांति): राज्य में कम से कम 22 लोगों की मौत हुई और लगभग 2,500 लोग घायल हुए। अधिकांश दुर्घटनाएँ धारदार मांझे या छत से गिरने के कारण हुईं।

- 2018: राज्य में 16 लोगों की मौत हुई, जिनमें से कई की गर्दन मांझे से कट गई थी। अन्य छत से गिरने या बिजली के झटके से मारे गए।

- 2015: उतरायण के दौरान 2,789 दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें एक व्यक्ति की मौत हुई।

2. दिल्ली

- 2016: स्वतंत्रता दिवस पर तीन लोगों की मौत हुई, जिनमें दो बच्चे शामिल थे, जब उनकी गर्दन कांच-लेपित मांझे से कट गई।

- 2019: एक 32 वर्षीय व्यक्ति की मौत हुई जब उसकी गर्दन चाइनीज मांझे से कट गई। उसी दिन आठ अन्य लोग घायल हुए।

3. उत्तर प्रदेश

- 2025: मेरठ में एक 21 वर्षीय युवक की बाइक चलाते समय गर्दन चाइनीज मांझे से कट गई, जिससे उसकी मौत हो गई।

4. राजस्थान

- 2018: जयपुर में मकर संक्रांति के दौरान 80 लोग घायल हुए, जिनमें से कई की चोटें कांच-लेपित मांझे से हुईं। 

5. महाराष्ट्र 

- जनवरी 2025 में महाराष्ट्र के नासिक, अकोला और नंदुरबार में तीन लोगों की मौत हुई और एक पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुआ। ये सभी घटनाएं प्रतिबंधित नायलॉन मांझे से हुईं, जो दोपहिया वाहन चालकों की गर्दन पर फंस गया था ।


बच्चों पर प्रभाव

2017 से 2022 के बीच एक अस्पताल के अध्ययन में पाया गया कि 42 बच्चों को मांझे से चोट लगी, जिनमें से 9.5% की मौत हो गई। विशेष रूप से वे बच्चे जो पतंगबाज़ी में सक्रिय रूप से शामिल नहीं थे, उन्हें अधिक गंभीर चोटें आईं ।


पक्षियों पर प्रभाव

पिछले सात वर्षों में, भारत में 8,000 से अधिक पक्षियों की मौत मांझे में उलझने के कारण हुई है। इस समस्या से निपटने के लिए गुजरात सरकार ने 2017 में 'करुणा अभियान' शुरू किया, जिसके तहत हर साल जनवरी में पक्षियों के इलाज के लिए शिविर लगाए जाते हैं ।


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