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संविधान हत्या दिवस (25 जून): जब लोकतंत्र पर पड़ा था अंधकार का साया

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हर साल 25 जून को भारत में लोकतंत्र के सबसे काले अध्याय की याद में "संविधान हत्या दिवस" मनाया जाता है। यह वह दिन था जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल (Emergency) घोषित किया था।

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आज यह दिन उन लोगों को श्रद्धांजलि देने का प्रतीक बन गया है जिन्होंने संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष किया।

आपातकाल क्या था?

 25 जून 1975 को सरकार ने अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लागू किया, जिसमें आंतरिक संकटका हवाला दिया गया।

 इसके प्रभाव:

मौलिक अधिकारों का निलंबन

प्रेस पर सेंसरशिप

विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी

आम जनता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त

यह स्थिति 21 महीने तक यानी मार्च 1977 तक जारी रही।

  

नागपुर में आपातकाल सेनानियों का सम्मान

2025 में महाराष्ट्र सरकार ने इस दिन को और महत्वपूर्ण बना दिया है।

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर के 402 आपातकाल सेनानियों को सम्मानित करने की घोषणा की है जिन्होंने लोकतंत्र की रक्षा में जेल यात्रा की।

आपातकाल का विरोध करने वालों ने लोकतंत्र को फिर से जीवित किया। यह सम्मान उनकी बहादुरी और बलिदान को नमन है।मुख्यमंत्री फडणवीस

  

क्यों जरूरी है "संविधान हत्या दिवस" की याद?

 युवाओं को लोकतंत्र का महत्व समझाना

लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की प्रेरणा देना

प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों की रक्षा का संकल्प

 

निष्कर्ष:

संविधान हत्या दिवस केवल अतीत की याद नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी भी है कि लोकतंत्र की रक्षा सदैव आवश्यक है।

आज का दिन हमें यह संकल्प दिलाता है कि हम स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति और संविधान की रक्षा के लिए सदैव सजग और सक्रिय रहें।

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