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फादर ऑफ ग्रीन रिवोल्यूशन एम एस स्वामीनाथन का 98 वर्ष की आयु में निधन

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Name:-MONIKA JHA
Email:-MONIKAPATHAK870@GMAIL.COM
Instagram:-@Khabar_for_you



चेन्नई स्थित अपने निवास स्थान पर ही उन्हें अंतिम विदाई दी गई।

https://www.khabarforyou.com/   की तरफ से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।
वे 98 वर्ष के थे। श्री स्वामीनाथन बढ़ी हुई उम्र के कारण कई स्वास्थ्य समस्याओं से परेशान थे।

वे श्री स्वामीनाथन ही थे जिन्होंने भुखमरी वाले भारत की काया पलट की थी।

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आईए जानते हैं उनके जीवन के बारे में 
मानकोंबू संबासिवन स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को हुआ। उन्हें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1972 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें 1967 में पद्मश्री और 1989 में पद्म भूषण से भी नवाजा गया।

एमएस स्वामीनाथन ही वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म को पहचान और स्वीकार किया।
इस कार्य के द्वारा भारत को अन्य के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सका था। यह मैक्सिकन गेहूं की एक किस्म थी। उन्होंने कृषि के लिए परंपरागत उपकरणों के स्थान पर नए व आधुनिक तकनीक उपकरणों के प्रयोग को लोगों से अवगत कराया। इन सभी प्रयासों से अन्य के मामलों में भारत न केवल आत्मनिर्भर हुआ बल्कि निर्यात करने में भी सक्षम हुआ। इसीलिए इन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक भी कहा जाता है।

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सम्मान व पुरस्कार

लंदन की रॉयल सोसायटी सहित विश्व की 14 प्रमुख विज्ञान परिषदों ने एम. एस. स्वामीनाथन को अपना मानद सदस्य चुना है। अनेक विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया है। स्वामीनाथन द्वारा प्राप्त किए गए सम्मान व पुरस्कार इस प्रकार हैं[1]-

1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए 'मैग्सेसे पुरस्कार'

1986 में 'अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार'

1987 में पहला 'विश्व खाद्य पुरस्कार'

1991 में अमेरिका में 'टाइलर पुरस्कार'

1994 में पर्यावरण तकनीक के लिए जापान का 'होंडा पुरस्कार'

1997 में फ़्राँस का 'ऑर्डर दु मेरिट एग्रीकोल' (कृषि में योग्यताक्रम)

1998 में मिसूरी बॉटेनिकल गार्डन (अमरीका) का 'हेनरी शॉ पदक'

1999 में 'वॉल्वो इंटरनेशनल एंवायरमेंट पुरस्कार'

1999 में ही 'यूनेस्को गांधी स्वर्ग पदक' से सम्मानित

'भारत सरकार ने एम. एस. स्वामीनाथन को 'पद्मश्री' (1967), 'पद्मभूषण' (1972) और 'पद्मविभूषण' (1989) से सम्मानित किया था।

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